सो कॉल्ड अन्तराष्ट्रीय कवि !
मैं यूँ तो खुद को, कवि नहीं कहता,
बस तुकबंदी वाले, खाँकें बनाता हूँ।
मेहनत कर शब्दों को, जोड़ तोड़,
अनकहे भावों के, गीत सुनाता हूँ।।
भूली बिसरी, कुछ एक कहानीयाँ,
चुन-चुन बारीकी से, उन्हें सजाता हूँ।
आशिष में फिर, सुच्चे मोति का,
मैं सानिध्य सदैव ही, पाता हूँ।।
यूँ तो सैनिक, जीवन यह अपना,
जो दुविधाओं से रहा, भरा पड़ा।
अदली-बदली, कर-कर के तबादला।
भारत के कोने कोने में, रखा खड़ा।।
मैं उठा फायदा, इसका ही मित्रों।
खुद को राष्ट्रीय कवि बताता हूँ।
आशिष में फिर, सुच्चे मोति का,
मैं सानिध्य सदैव ही, पाता हूँ।।
अब यही लालसा, जगी है मन मे,
हो आदेश तो, आज मैं बतलाऊँ।
ऑनलाईन, विदेशी ग्रुप बनाकर,
विश्वविख्यात कवि, भी कहलाऊँ।।
सो काल्ड अंतराष्ट्रीय, कवियों का,
बस अब, मैं भी लीडर बन जाता हूँ।
आशिष में फिर, सुच्चे मोति का,
मैं सानिध्य सदैव ही, पाता हूँ।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २४/१२/२०२३)