सोलह शृंगार
चहुँओर जलद
छाया गगन,
घटाटोप बरस
सावन का घन,
मेढक की टर्र,
पंछी मगन,
झूमे तरु
शीतल पवन,
सोंधी सुगंध
मदमस्त मन;
द्रुतगति बहे
निर्झर की धार,
प्लावित नदी
नाले औ ताल,
तरुवर छादित
किसलय हर डाल,
तृण दल हरित
सर्वत्र आज,
धरती सजी
सोलह शृंगार
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)