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19 Jul 2022 · 1 min read

सोलह शृंगार

चहुँओर जलद
छाया गगन,
घटाटोप बरस
सावन का घन,
मेढक की टर्र,
पंछी मगन,
झूमे तरु
शीतल पवन,
सोंधी सुगंध
मदमस्त मन;
द्रुतगति बहे
निर्झर की धार,
प्लावित नदी
नाले औ ताल,
तरुवर छादित
किसलय हर डाल,
तृण दल हरित
सर्वत्र आज,
धरती सजी
सोलह शृंगार

मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)

Language: Hindi
6 Likes · 8 Comments · 515 Views
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