#ग़ज़ल-07
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देख रहा हूँ प्रेम बहता ये जो नीर बन
पीर विरह की अग्नि जलता तन मन आज है/1
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परछाई-सी साथ आये ना पर हाथ भी
ऐसी अपनी प्रीत फिर भी कितना नाज है/2
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मन का रिश्ता प्रेम आस्था चाहे त्याग भी
ख़ुशियाँ करना दान मोहब्बत का साज है/3
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अपने हित पर घात कार्य घृणित ये एक है
मानवता के भाल लज्जा गिरती गाज है/4
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शत्रु शरण दे मान उच्च नेक वो धर्म है
चकमा दे-दे मार कायरता का काज है/5
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प्रेम भरा उपहार मन हर लेता यार का
छाप दिलों पर डाल करता हरपल राज है/6
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प्रीतम धोखा ख़ून करना न कभी भूल से
रखना नेक ज़मीर जाता चाहे ताज है/7
–आर.एस.प्रीतम
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