सोने का मुल्लमा
एक बार जब चांदी की अँगूठी पर सोने का मुल्लमा जो चढ़ा ।
वह इतरा के कहने लगी कि मैं अब घटिया चांदी की अँगूठियों के बीच कैसे रहूंगी।
मुझे तो किसी दौलतमंद इन्सान की उँगली की खूबसूरती बढ़ानी होगी।
तभी एक चांदी की अँगूठी ने कहा यह सोने की ठस़क चार दिन की है।
जब अस़लियत खुलेगी और तेरी हक़ीकत का पता लगेगा तो तुझे उतार कर कर फेंक दिया जाएगा।
तब तू अपनी बिरादरी में लौट कर आ जाएगी तब तेरी सब हँसी उड़ाएंगे।
इसलिए अपनी हकीकत को भूल कर कर चार दिन की चमक पर गुरुर न कर।
तेरे अपने ही उस वक्त तुझे तेरे गम को बांटने मे काम आएंगे।
इसी तरह कुछ इन्सान चार दिन की चाँदनी मे अपनों को भूलकर दीग़र जम़ातों मे शाम़िल हो जाते हैं। और वहाँ से ऱुसवा होने पर अपनों मे लौट आते हैं।