सोच सोच में ज़िंदगी
सोच सोच में ज़िंदगी तनहा राख़ हो गई,
मैंने तो बस दो चार लिखी आप बीती,
पलटकर देखा तो मेरी किताब हो गई,
कुछ मासूम चेहरे कुछ गुनगुनाते सहरे,
खूब झूमें थे मेरे साथ पकड़कर मेरा हाथ,
सच कह दिया तो रुस्वा कायनात हो गई,
चोर बाज़ारी धोखादड़ी लाचारी छोड़ दी,
अब मैं लेता हूँ खुले आम सबका नाम,
जिसका भी नाम लिया हवा उसके साथ हो गई,
न मैं डरता हूँ न वो डरते है महफ़िल से,
सारी महफिलों में जा जाकर देखा है हमने,
गुलाबी फूलों की सेज आँखों की बरसात हो गई,
तनहा शायर हूँ