सोच मरुस्थल में गुल खिले हों तो।
गज़ल
काफिया-ए स्वर की बंदिश
रदीफ- हों तो
फाइलातुन मुफाइलुन फेलुन
2122……..1212……..22
सोच मरुस्थल में गुल खिले हों तो।
बाल गंजों के भी उगे हों तो।
नेत्रहीनों के खास म्यूजिक पर,
गीत गूंगे भी गा रहे हों तो।
सेव करती हों नारियां सोचो,
नर भी साड़ी पहन रहे हो तो।
सूर्य को दिन में मात देने को,
सारे जुगनू तने खड़े हों तो।
हम रहेंगे न जंगलों में अब,
जानवर घर में घुस रहे हों तो।
औरतें लें सभी मजे घर में,
मर्द खाना बना रहे हों तो।
चांद पर रहती प्रेमिका से भी,
प्यार धरती कर रहे हों तो।
चुन के भेजा है जिसको जनता ने,
खींच बाहर भी कर रहे हों तो।
नाव उड़ने लगें हवा में भी,
प्लेन पानी में चल रहे हों तो।
गंदे पानी की तर्ह हर नल से,
मुफ्त पेट्रोल दे रहे हों तो।
बने हैं क्रूरता के प्रेमी जो,
प्यार करना सिखा रहे हों तो।
……..✍️ प्रेमी