सोच और हम
शीर्षक – सोच और हम
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एक सच हम सभी जानते हैं।
बस हम अपने स्वार्थ में रहते हैं।
उम्र और सोच हमारी अपनी होती हैं।
हां जब अपने साथ दुःख बीतता हैं
उस समय याद अपने पराए आंतें हैं।
कर्म कहो या भाग्य सच तो यही हैं।
हम सभी एक-दूसरे से मतलब रखते हैं।
आधुनिक समय में हम सभी मन रखते हैं।
बस सोशल मीडिया हम सभी है चुके हैं।
सोच और हम सभी अपनी जानते हैं।
सोच ही हम और सोच और हम होते हैं।
जिंदगी बस सोच और हम ही रहते हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र