“सोचने की बात”
आज एक बच्चे को दूसरे बच्चे की शिकायत उसके पिता से करते सुना ,साथ ही उसका निवेदन भी ,कि चाचा उसको मारना नहीं पीटना नहीं सिर्फ डांट देना ।इस निवेदन में कहीं ना कहीं उसकी अपनी वेदना छुपी नजर आई कि मार लगने पर कितना दर्द होता है ,यह दर्द वह भली-भांति समझ रहा था और मैं उसके मन के भावों को समझने की कोशिश कर रही थी कि एक छोटा बच्चा किस सोच के साथ यह निवेदन कर रहा है एक ओर शिकायत भी और एक ओर निवेदन भी क्या ?जो मां बाप अपने बच्चों को जानवर की तरह पीटते हैं उन्हें पीटते समय यह एहसास ना होता होगा ,जो उस बच्चे को एक छोटी सी उम्र में हुआ ।मां बाप तो, बच्चा जब तक पस्त नहीं पड़ जाता रुकने का नाम नहीं लेते और अपनी एक जीत महसूस करते हैं और संतुष्टि अनुभव करते हैं लेकिन क्या ?उन्हें इस बात की जरा भी फिक्र नहीं होती कि वह क्या कर रही हैं ,जब बचपन में उनके साथ यही हुआ होगा तब उन्हें कैसा अनुभव हुआ होगा क्या? वह भी औरों की तरह जानवर ही बने रहना पसंद करता है या कुछ बदलाव चाहता है उस बच्चे की तरह यह एक सोचने की बात है।