सोचता हूं…
सोचता हूं अपने दिल को आवारा कर लूं
उसे भुलाकर इश्क किसी से दुबारा कर लूं
चांद नही है अपनी तकदीर में तो क्या
दिए की रोशनी से अपना गुजारा कर लूं
यूं कांटो से ही कब तक उलझता रहूं मैं
फूलों को तोड़ने का वो ख्वाब पूरा कर लूं
इसकी इजाजत गर मेरा दिल नही देता
क्यों न अपने ही दिल से किनारा कर लूं
अब उनका जिक्र करेंगे न फिक्र करेंगे
क्यों ना खुद को ही खुद का सहारा कर लूं
सोचता हूं अपने दिल को आवारा कर लूं
उसे भुलाकर इश्क किसी से दुबारा कर लूं….