सोचकर देखो
युग बदल रहा है तुम भी जरा बदल कर देखो मोह-माया से दूर कहीं सीधे चलकर देखो !
वक्त का सुरुर बहुत कुछ है कहता यहाँ , मंज़िल है कहाँ तुम बस ये सोच कर देखो !
आयेगा वक्त इस कदर तुम्हारा भी कभी, बडे हो गये हो ज़रा बडा सोचकर देखो !
मिलेगा यहाँ फरिश्ते की तरह कोई, अब की बार भरोसा करके तो देखो !
खुदा ने भेजा है तुम्हे किसी अच्छे के लिये यहाँ , इस कदर कभी खुद को समझकर तो देखो !
आस्था भी निराधार भक्ति भी जरुरी यहाँ, सयंम कभी तो कभी खुद को शांत करके तो देखो !
बदल गया यहाँ बहुत कुछ यहाँ, खुद को भरी नींद से जगा कर तो देखो !
.. ..बृज