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29 Jun 2022 · 1 min read

नज़रें मिलाना भी नहीं आता

क्या सितम है के उन्हें नजरें मिलाना भी नहीं आता।
हम हकलाने लगते हैं, उन्हें तो शरमाना भी नहीं आता।

वैसे तो रहते हैं खोए-खोए से अक्सर ही वो कहीं पे
जो बरसते हैं किसी पे तो, थम जाना भी नहीं आता।

चलो शुक्र है, जो वो नहीं समझते मेरे लफ़्ज़ों को
चलो शुक्र है हमें हाल अपना, समझाना भी नहीं आता।

उनको नहीं समझना तो न सही ये उनकी मर्जी,
और ऐसा भी नहीं है कि हमें जताना भी नहीं आता।

कैसे कहेगा `अभि` हुआ है तुझपे सितम रेहान अब
तेरे गवाह खुद कहेंगे उन्हें तो सितम ढाना भी नहीं आता।

© अभिषेक पाण्डेय अभि

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