*सेवा-व्रतधारी सदा राष्ट्र, सेवा में ही रत रहते थे (राधेश्या
सेवा-व्रतधारी सदा राष्ट्र, सेवा में ही रत रहते थे (राधेश्यामी छंद )
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सेवा-व्रतधारी सदा राष्ट्र, सेवा में ही रत रहते थे
हर समय समर्पण के उनमें, निष्काम भाव शुभ बहते थे
आओ उनके पदचिन्हों पर, चलने का हम भी काम करें
बनकर सपूत भारत मॉं के, जग में भारत का नाम करें
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451