सेवानिवृत्ति
भोर में सूरज की किरणों को देख के
क्या तुम अब नींद से जाग पाओगे
ऑफिस जाने की जल्दी में क्या कभी
तुम घर से भूखे प्यासे ही भाग पाओगे
इस कर्म भूमि के रंगमंच पर तुम्हारी
आ गई है अभिनय की अन्तिम घड़ी
अब तुम्हारे अपने नये किरदार से
जोड़ देगी तुम्हें जिंदगी की कड़ी
कितने ही वर्षों से निरन्तर तुमने
अपने कर्त्तव्यों का किया निर्वहन
धूप छाॅंव हो या बारिश और आपदा
सब कुछ तुमने सर पर किया सहन
अपने यौवन को किया पूर्ण समर्पित
केवल अपने कर्त्तव्यों को दिया मान
कार्य के संग हो हमेशा ही अनुशासन
तुमने अपने अनुभवों का दिया खान
ब्रह्म मुहूर्त में क्या पहले की तरह तुम
अब कभी भी नींद से जाग पाओगे
अगर कहीं जग भी गये तो सच कहो
क्या तुम अपना ऑफिस जा पाओगे
लेकिन ये सच है कि अभी कुछ दिन
अनायास तुम्हारी ऑंखें खुल जाएगी
ऑफिस जाने की तुम्हारी पुरानी आदत
सपने में भी तुम्हें पूरी तरह याद आएगी