सेल्फ़ी नहीं किसी का दर्द खींच सको तो ज़रूर कोशिश करना
विषय- “सेल्फ़ी नहीं, पर किसी का दर्द खींच सको तो कोशिश करना”
पर उपकार करो जीवन में
बुझा क्षुधा की प्यास,
सेल्फ़ी छोड़ो बनो सहारा
हर लो जन संत्रास।
खड़े राह में हाथ पसारे
बेघर दुखी फ़कीर,
बाँट सको तो दुख को बाँटो
समझो उनकी पीर।
नन्हें बालक बोझा ढोते
फूटे छाले हस्त,
आगे आकर इन्हें सँभालो
कितना बहता रक्त।
कर्ज़ चुकाओ इस जीवन का
भूलो सैल्फ़ी दौर,
असहाय के दर्द को खींचो
मिले इन्हें भी ठौर।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)
मैं डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना” यह प्रमाणित करती हूँ कि” सैल्फ़ी नहीं किसी का दर्द खींच सको तो कोशिश करना” कविता मेरा स्वरचित मौलिक सृजन है। इसके लिए मैं हर तरह से प्रतिबद्ध हूँ।