सृष्टि के रहस्य सादगी में बसा करते है, और आडंबरों फंस कर, हम इस रूह को फ़ना करते हैं।
कुछ तूफां किनारों पर नज़र रखते हैं,
साथ चलते हैं समंदर में, पर साहिलों पर असर करते हैं।
लक़ीरें हाथों की भी तो, तां-उम्र साथ चलती है,
फिर क्यों ख़्वाहिशें, क़िस्मत से हर वक़्त लड़ा करतीं हैं।
वो सितारे जो घनी रातों की चमक बनते हैं,
ग़र्दिशों में डूबकर हीं तो, नज़रों में ऐसे चढ़ते हैं।
नंगे पाँवों को, जो शबनम सुकूं दिया करती है,
बिना कड़ी धूप के, परछाईयाँ भी कहाँ जन्म लिया करती हैं।
वो ख़्याल जो हर वक़्त ज़हन में रहा करते हैं,
अक्सर शब्दों के बीच की, ख़ामोशियों में दफ़्न रहते हैं।
कुछ सवाल जो अस्तित्व को धाराशाही करती हैं,
क्या जवाबों की सत्यता, जानकार भी वो दर्दों से उबरती है।
सुख-दुःख के दो पहियों पर, ज़िन्दगी ये सफर करती है,
फिर भी एक दूसरे से मिलते हीं बिछड़ती है।
सृष्टि के रहस्य सादगी में बसा करते है,
और आडंबरों फंस कर, हम इस रूह को फ़ना करते हैं।