सृष्टि की उत्पत्ति (भाग-२)
मनु सतरूपा प्रकटे ब्रह्मा से, सप्त ऋषि संग आए
धरती पर कैसे रहना है, ज्ञान संग में लाए
सत्य प्रेम और करुणा का, पाठ में तुम्हें पढ़ाता हूं
सर्वेश्वर की वाणी,वेदों का सार बताता हूं
है सर्वेश्वर का यही मंत्र, मैं तुमको आज बताता हूं
घट घट में सर्वेश्वर बैठे, बात भूल ना जाना
मृत्युलोक में भेज रहा हूं, लौट तुम्हें है आना
तुम अपने आचरण कर्मों से, किसी को दुख न पहुंचाना
तुमको निर्मल भेज रहा हूं, तुम निर्मल वहां से आना
सब जीवों से अलग, मैंने तुम्हें बनाया है
हो मेरी देह से प्रकट, यह पंचभूत की काया है
न रखना तुम राग द़ेष, क्लेश नहीं पाओगे
करते-करते पर स्वारथ, पहचान मुझे तुम पाओगे
हे मनुष्य मनुष्यता अपना, पहला उद्देश्य बनाना
घोर अहं में पढ़कर बंदे, मुझको भूल न जाना
मैंने तुमको सुंदर धरती दी है, सुख शांति से रहने को
नाना अन्न फल फूल दिए हैं, मैंने तुमको खाने को
सरिताओं को निर्मल रखना, रखना ख्याल पहाड़ों का
नष्ट न करना जैव विविधता, ध्यान रहे इन बातों का
जब तेरा परिवार बड़े, भाईचारे से रहना
दुनिया है सारी कुटुंब, यह भाव सभी से रखना
यह आत्मा है परमात्मा की, हर समय तुम्हें निहारेगी
विरुद्ध आचरण करने पर , यह हरदम ही धिक्कारेगी
जब बुद्धि न काम करें, तुम सुना इसकी बात सदा
नीर क्षीर कर देगी यह, पापों से तुम्हें बचा लेगी
चार दिनों का मेला है, गिनती की यह सांसे हैं
एक दिन प्राण निकल जाएंगे, फिर चला चली की बेला है
पल पल का आनंद लूटना, सुख में भी और दुख में भी
जीवन तो सुख दुख एक सपना, कर्म है अपना अपना
मनुज धर्म को नहीं भूलना, प्रमाद कभी न करना
अच्छा रखना उद्देश तू अपना, कर्म निरत नित रहना
कभी न तुम कटु वचन बोलना, सदा अहिंसा से रहना
काम क्रोध मद लोभ मोह, यह पंच विकार कहलाते हैं
धर्म अर्थ और काम मोक्ष, यही पुरुषार्थ कहलाते हैं
करके सामंजस्य चलोगे, सारा वैभव पाओगे
जीकर जीवन आनंद खुशी से, फिर महाप्राण में आओगे
असीम शक्ति के पुंज हो तुम, हे मनुज भूल ना जाना
करते रहना शुभ काम जगत में, तुम अपना नाम कमाना
गर्वित हो मानवता तुम पर, ऐंसा चलन चलाना
मानवता हो शर्मसार, कर्म नहीं ऐंसे करना
कदम फूंक के रखना अपने, न गिरना और गिराना
चमकदार इस दुनिया में, खुद को सदा बचाना
सदा रहे कर्तव्य बोध, खुद चलना और चलाना
ऋणी हो तुम सर्वेश्वर के, बंदे भूल न जाना
ऋणी हो गुरु मात पिता के, कर्म से कर्ज चुकाना
कर्ज बड़ा धरती माता का, तुम कैसे इसे चुकाओगे
सदा याद रखना तुम इनको, मां की गोद सा सुख पाओगे
मैंने तुमको जाने से पहले, बहुत हिदायत दे डाली
बैठे-बैठे देखूंगा तुमको, तुमने क्या छोड़ी और क्या पाली
बहुत कहा अब कुछ न कहूंगा, अब धरती पर जाओ
मात पिता और गुरु की वाणी, अपने हृदय बसाओ
जाओ पंचतत्व के पुतले, पूर्ण पुरुष हो जाओ