Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 May 2024 · 1 min read

सृष्टि का रहस्य

नारी जीती रही है ,
अपनी अंतर्विरोधों के बीच
वह नहीं जानती थी कि
वह क्या है?
कितनी ही चरित्र अभिनीत
कर चुकी है और
निरंतर कर रही है।
मगर सत्य है कौन सा रूप ?
यह जानना
इतना सरल नहीं है।
वह किसी की बेटी ,
किसी की बहिन,
किसी की प्रेयसी,
किसी की पत्नी ,
और किसी की माॅं भी है।
मगर सभी रूपों में
जीवित है ,
उसका नारीत्व
अपनी संपूर्णता के साथ।
हृदय में प्यार लिए ,
करुणा का संभार लिए,
अश्रु का उपहार लिए ,
दुखों को आंचल में छिपा,
खुशियों का संसार लिए ,
जीती है उसे नर के लिए,
जो कहीं उसका पिता है,
कहीं उसका भाई है,
कहीं उसका प्रेमी है,
कहीं उसका पति है,
और कहीं उसका बेटा है।
किंतु वक्त के साथ उसने
पहचान लिया है,
उसे जीना होगा-
उसे स्त्री के लिए भी
जो कहीं उसकी माॅं है,
कहीं उसकी बहिन है,
कहीं उसकी हमदर्द है
कहीं उसकी बेटी है
और साथ ही
स्वयं के लिए भी
क्योंकि उसने स्वयं को
पहचान लिया है।
नर और नारी सम है
यह जान लिया है।
और अब वह
जी रही है,
अपने संपूर्ण व्यक्तित्व को,
सही अर्थों में
क्योंकि उसने
सृष्टि का रहस्य
पहचान लिया है।
-प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव
अलवर (राजस्थान)

Language: Hindi
2 Likes · 59 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
View all
You may also like:
ग़ज़ल (ज़िंदगी)
ग़ज़ल (ज़िंदगी)
डॉक्टर रागिनी
प्रभु -कृपा
प्रभु -कृपा
Dr. Upasana Pandey
मैं अकेला नही हूँ ।
मैं अकेला नही हूँ ।
Ashwini sharma
प्रकृति प्रेम
प्रकृति प्रेम
Ratan Kirtaniya
अगर तू दर्द सबका जान लेगा।
अगर तू दर्द सबका जान लेगा।
पंकज परिंदा
*रामपुर में सर्वप्रथम गणतंत्र दिवस समारोह के प्रत्यक्षदर्शी श्री रामनाथ टंडन*
*रामपुर में सर्वप्रथम गणतंत्र दिवस समारोह के प्रत्यक्षदर्शी श्री रामनाथ टंडन*
Ravi Prakash
*नयन  में नजर  आती हया है*
*नयन में नजर आती हया है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मजदूर है हम
मजदूर है हम
Dinesh Kumar Gangwar
गुरुकुल शिक्षा पद्धति
गुरुकुल शिक्षा पद्धति
विजय कुमार अग्रवाल
फूलों से हँसना सीखें🌹
फूलों से हँसना सीखें🌹
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
छोड़ कर घर बार सब जाएं कहीं।
छोड़ कर घर बार सब जाएं कहीं।
सत्य कुमार प्रेमी
దేవత స్వరూపం గో మాత
దేవత స్వరూపం గో మాత
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
किसी को किसी से फ़र्क नहीं पड़ता है
किसी को किसी से फ़र्क नहीं पड़ता है
Sonam Puneet Dubey
बड़ी सादगी से सच को झूठ,
बड़ी सादगी से सच को झूठ,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
साँसें थम सी जाती है
साँसें थम सी जाती है
Chitra Bisht
उसकी ख़ामोश आहें
उसकी ख़ामोश आहें
Dr fauzia Naseem shad
सिंदूर विवाह का प्रतीक हो सकता है
सिंदूर विवाह का प्रतीक हो सकता है
पूर्वार्थ
सियासत
सियासत
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
अब लगती है शूल सी ,
अब लगती है शूल सी ,
sushil sarna
ज़िंदगी जीने के लिए है
ज़िंदगी जीने के लिए है
Meera Thakur
International Chess Day
International Chess Day
Tushar Jagawat
आतें हैं जब साथ सब लोग,
आतें हैं जब साथ सब लोग,
Divakriti
मुक्तक...छंद-रूपमाला/मदन
मुक्तक...छंद-रूपमाला/मदन
डॉ.सीमा अग्रवाल
" दायरे "
Dr. Kishan tandon kranti
नई सोच नया विचार
नई सोच नया विचार
कृष्णकांत गुर्जर
ऐसा क्यूं है??
ऐसा क्यूं है??
Kanchan Alok Malu
#दोहा-
#दोहा-
*प्रणय*
4522.*पूर्णिका*
4522.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
एक हम हैं कि ख्वाहिशें,चाहतें
एक हम हैं कि ख्वाहिशें,चाहतें
VINOD CHAUHAN
एक एक ईट जोड़कर मजदूर घर बनाता है
एक एक ईट जोड़कर मजदूर घर बनाता है
प्रेमदास वसु सुरेखा
Loading...