सृष्टि का रहस्य
नारी जीती रही है ,
अपनी अंतर्विरोधों के बीच
वह नहीं जानती थी कि
वह क्या है?
कितनी ही चरित्र अभिनीत
कर चुकी है और
निरंतर कर रही है।
मगर सत्य है कौन सा रूप ?
यह जानना
इतना सरल नहीं है।
वह किसी की बेटी ,
किसी की बहिन,
किसी की प्रेयसी,
किसी की पत्नी ,
और किसी की माॅं भी है।
मगर सभी रूपों में
जीवित है ,
उसका नारीत्व
अपनी संपूर्णता के साथ।
हृदय में प्यार लिए ,
करुणा का संभार लिए,
अश्रु का उपहार लिए ,
दुखों को आंचल में छिपा,
खुशियों का संसार लिए ,
जीती है उसे नर के लिए,
जो कहीं उसका पिता है,
कहीं उसका भाई है,
कहीं उसका प्रेमी है,
कहीं उसका पति है,
और कहीं उसका बेटा है।
किंतु वक्त के साथ उसने
पहचान लिया है,
उसे जीना होगा-
उसे स्त्री के लिए भी
जो कहीं उसकी माॅं है,
कहीं उसकी बहिन है,
कहीं उसकी हमदर्द है
कहीं उसकी बेटी है
और साथ ही
स्वयं के लिए भी
क्योंकि उसने स्वयं को
पहचान लिया है।
नर और नारी सम है
यह जान लिया है।
और अब वह
जी रही है,
अपने संपूर्ण व्यक्तित्व को,
सही अर्थों में
क्योंकि उसने
सृष्टि का रहस्य
पहचान लिया है।
-प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव
अलवर (राजस्थान)