सृजन
सतत
चले लेखनी थके न
हाथ सृजन से ।
काव्य कला का
हो निखार
निर्द्वन्द मनन से ।।
कोरे कागज नहीं समय
की अमिट छाप है ।
दिखता है सर्जक खुद जिसमें
अपने आप है ।।
शब्द बीज से वृक्ष
पल्लवित पुष्पित होते ।
सुफल सजें साहित्य धरा पर ,
बीज जो बोते ।।
जब जब नीर
विचार वृष्टि से आता मन में ।
स्वतः सृजन अवतरित
गूँजता अखिल गगन में ।।
✍️ सतीश शर्मा ।