सूरत की कोई दिखाई ना होगी।
यह इश्क़ की आग है यूँ बुझायी ना बुझेगी।
उलझन है बड़ी ऐसे सुलझाई ना सुलझेगी।।1।।
गर सीरत की चाह हो तो लाना घर रिश्ता।
वरना अब सूरत की कोई दिखाई ना होगी।।2।।
सदियों से इश्क़ रहा है कल भी आज भी।
पर राधा श्याम को ना मिली है ना मिलेगी।।3।।
ऐसे तो कभी ना सुधरेगी उसकी ये आदत।
जब तक सख्ती से कोई पाबंदी ना लगेगी।।4।।
सारे शहर में आग लगी है मज़हब की कैसी।
तन्हा अकेले तो किसी से लगाई ना लगेगी।।5।।
देखो अब कलयुग की यह रावण लंका है।
किसी भक्त हनुमान से जलायी ना जलेगी।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ