*सूरज ने क्या पता कहॉ पर, सारी रात बिताई (हिंदी गजल)*
सूरज ने क्या पता कहॉ पर, सारी रात बिताई (हिंदी गजल)
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1)
सूरज ने क्या पता कहॉं पर, सारी रात बिताई
सुबह हुई तो प्रमुदित मन था, लेकर नव-तरुणाई
2)
मूरख ही ढोते रहते हैं, भारी-भरकम बोझा
नहीं जानते वह हल्के में, होती सहज चढ़ाई
3)
पद-पैसे का मूल्य शून्य है, दो दिन इसका जीवन
गया राज तो किसने किसकी, महा-आरती गाई
4)
चाहे जितने भी सुंदर हों, फूल-पेड़ के पत्ते
एक दिवस मुरझाते हैं वे, होती सहज विदाई
5)
जिस तन पर अभिमान बहुत है, क्षण-भर में मिट जाता
शमशानों ने बड़े-बड़ों की, प्रतिदिन चिता जलाई
6)
सिर पटकोगे अगर छीनने, कुछ हमसे आओगे
कुछ भी पास नहीं है अपने, क्या छीनोगे भाई
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615 451