सूरज नहीं थकता है
सूरज को चैन कहां, आराम कहां, अभिमान कहां?
जहां भी रहता है, रैन कहां, रात कहां,अंधकार कहां?
उसे पता है, आगे और जाना है अभी कहां- कहां?
कभी उत्तरायण होता है, कभी दक्षिणायन होता है
पूरब से निकलता है, पश्चिम में जाकर छिप जाता है
एक क्षितिज से निकल , दूसरे क्षितिज को जाता है।
सूरज को चैन कहां, आराम कहां, अभिमान कहां
हम सोएं रहते हैं, खिड़की से वह झांकने लगता है
गरीबों के छप्पर के छेदों से उन्हें वह जगाने आता है
“उठो -उठो, जागो- जागो अग्रसर हो, वह कहता है”
कुछ करों, करने में लगो, व्यर्थ क्यों तुम सोते हो
बहुत हुआ आराम,अब काम करों, कर्म ही जीवन है।
वह तो आपेक्षिक रूप से स्थिर है, पर उसमें भी गति है
पृथ्वी चलती है, अपनी धुरी पर अविराम घूमती भी है
पृथ्वी चलती है घूम कर फिर अपनी जगह आती भी है
सूरज के प्रभा से तम तिरोहित, चांद मद्धम होता है
असंख्य सितारें अदृश्य हो आकाश में छिप जाते हैं
तुम्हारे आने से जग और जगत आलोकित हो जाते हैं ।
हे सर्व शक्तिमान! हे प्रकृति के पौरुष ! हे दिनमान !
रश्मि- रथ लेकर सात घोड़े पर सवार धरती पर आते हो
आदित्य एल-1 रहस्यों का पता लगाने भारत ने भेजा है
कितनी गर्मी कितनी करने तुम्हारे छाती में समाया है?
जिस दिन तुम मुसाफिर/ पथिक की तरह थक जाओगे
न रहेगा जीवन, हवा, पानी, पर्यावरण कहां रह पाएगा।
सूरज को चैन कहां ,आराम कहां, अभिमान कहां ।
जहां भी रहता है, रैन कहां, रात कहां, अभिमान कहां।
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@मौलिक रचना घनश्याम पोद्दार
मुंगेर