सूरज क्यों गुस्से से लाल
सूरज क्यों गुस्से से लाल
गर्मी ने पसीने निकाले
लाल सूर्य की रश्मिवलियां,
कुद्ध दिख रहा क्यों आज दिवाकर ,
काट दिये जो तरू धरा के,
समतल कर दिये जन ने भूधर।
पानी दूषित वायु प्रदूषित,
मिट्टी में जहर है घोला।
वन काटे और पशुओ को मारा
एक पूछता हूँ मैं सवाल ।
वर्षा बिन क्या होगा हाल।
पूछा सूरज क्यों गुस्से से लाल।
मानव सब है तेरी चाल।।
दोहन करते संसाधन की
कभी रहा क्या भविष्य का ख्याल ।
प्रदूषण जब मार रहा तो,
क्यों होते हो तुम बेहाल।।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र
नरई संग्रामगढ प्रतापगढ उ प्र
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