सूनी अँखियाँ
सुनी सूनी मेरी अंखियां , रीति रीती मेरी रतियाँ
देवत ताने सगरी दुनियां , सुनो पुकार अब मेरी ढोला
तुम बिन फ़ीकी मेरी अंघिया ………
तुमसे सजता मेरा जीवन , देख तुम्हें ही खिलता है मन
तुमसे महके मन का मधुवन , महके तुम्हें देख ये कलियाँ
हृदय कि धडकन मेरी बोले , चरण तुम्हारे जग की खुशियाँ
मोहे कबहुं आवाज लागवो , कबहुं तो अपने निकट बिठावो
साँस हमारी महको बन खुश्बू , हृदय तुम धडकन धड्कावो
रत्न मिलन की मन को लागी , कटनी तुमसे से बहुरि बतियाँ
कभी तो स्वामी संग बिठावो , कबहुं अपने अंग लगावो
अधर तुम्हरे मुकुंद मुकुल हैं , ऐसे ही जब तुम मुस्कावो
रहूँ अकेल कैसे अब जग में , रोवत मेरी नित पैन्झानियाँ
विलग कैसे तुमसे हो जाऊं, रोक कहों कैसे खुद पाऊं
जगत के ठहाके सहकर सबरे , विरहा के गम को पी जाऊं
मैं अवोध हे मेरे स्वामी , चाहूँ छिपना तेरी ही बहियाँ
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