सूखा शज़र
***** सूखा शज़र (ग़ज़ल) *****
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खास थी फिर दबी खबर क्यों है।
खूब सूखा हरा भरा शज़र क्यों है।
छोड़ झट है दिया अधर में तुमने,
बे – रहम ये हुआ जिगर क्यों है।
ऑंख से रक्त है गिरे बन ऑंसू,
फिर हुई हर कठिन डगर क्यों है।
खून से खेलते यहाँ होली,
यूं जले फिर बसा शहर क्यों है।
हादसों का यहाँ शुरू मेला,
यार मुश्किल हुआ बसर क्यों है।
प्यार सूरत नहीं देखता सीरत,
यार सूना लगे पहर क्यों है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)