सूखा पत्ता
वो भी कभी बहारों का
हुआ करता था हिस्सा
गिरा पड़ा था सड़क पर
जो सूखा निर्जीव पत्ता ।
प्रकृति ने साथ दिया नही
जडों ने पोषण किया नही
चंद दिनो मे मुरझा गया
हरा भरा था जो सजीव पत्ता ।
बड़ा हुआ था जिस शाख पर
उसी ने दामन छुड़ा लिया
पतझड़ का समय हुआ
गिराया डाली ने कमजोर वो पत्ता ।
हवा ने मौका देखा
दूर उड़ा के उसे फेंक दिया
विलीन हो गया धुंए मे
जब जलाया किसी ने वो बेबस पत्ता ।।
राज विग