“सूखा गुलाब का फूल”
🌹सूखा गुलाब का फूल🌹
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मेरी पुरानी किताब के पन्नों के बीच ,
रखा मिला मुझे “सूखा गुलाब का फूल”।
रहा था जो अपनी ओर मुझे खींच ,
प्यारा, मुर्झाया सा, चारों ओर छुपा शूल ।
बता रहा था इक पुरानी सी दास्तां ,
संग लिए ना जाने कितने सारे अरमां ।
था होता इक मौसम बोलता अपनी जुबां ,
लेता था छू अपने हिसाब से मानो आसमां ।
वक्त गुजरता गया, चलता रहा ये कारवां ,
पर आ न सकी वो इस बदनसीब के दरमियां ।
काश कुछ ऐसा होता, होती जो वो हमनवां ,
हासिल हो जाती अब तक, होता जो खुदा मेहरबां ।
बहुत कुछ कह रहा वो “सूखा गुलाब का फूल”,
ना जाने किस मोड़ पे, मुझसे हुई हो कुछ भूल ।
जिसे देखकर जी लेता हूॅं उन बीते लम्हों को ,
एहसासों में डूबा, होता था अपनी धुन में मशगूल ।
( स्वरचित एवं मौलिक )
© अजित कुमार “कर्ण” ✍️
~ किशनगंज ( बिहार )
दिनांक :- 15 / 03 / 2022.
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