“सुरेंद्र शर्मा, मरे नहीं जिन्दा हैं”
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
वाह रे सोशल मीडिया,
कब आएगा लोगों को,
तेरे इस्तेमाल का ढंग,
आगे निकलने की,
लोगों में ऐसी रेस मची है,
कि पूछो मत!
मुझे न जाने क्यों,
तेरे और वफर खाने में,
बहुत अंतर नहीं लगता,
क्योंकि आज तक बहुतों को,
वफर खाने का ढंग नहीं आया,
वैसे ही सोशल मीडिया के,
इस्तेमाल का ढंग नहीं आया!
आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों,
ऐसी आपाधापी क्यों!
कब सुधरेंगे ऐसे लोग,
फेसबुक, वाट्स अप पर,
पोस्ट करने से पहले,
क्यों नहीं कोशिश करते,
जानने की सच्चाई!
आखिर क्यों,
ऐसा करते हैं ये लोग!
कैसे कैसे गजब के हैं लोग,
जिन्दा को मरा बताने की,
होड़ मचाए हैं,
जिसे मरा बता रहे,
वे सुरेन्द्र शर्मा,
स्वयं आकर बता चुके,
कि मैं जिन्दा हूं।
फिर भी उन्हें, फूल चढ़ा,
श्रद्धांजलि दे रहे हैं!
क्या ये लोग उनके समर्थक हैं,
या दुश्मन। जो बिना जाने,
उन्हें मारे जा रहे हैं।
आखिर कैसे प्रेमी हैं ये लोग,
कितना सुने हैं सुरेन्द्र शर्मा को,
कितना जानते हैं, उनके बारे में।
क्या उन्हें नहीं पता,
कि सुरेंद्र शर्मा, कभी मर नहीं सकता,
वह तो एक जिन्दा दिल इंसान है।
हमेशा लोगों के दिल में,
जिन्दा रहेगा।
प्लीज ऐसे न मारों किसी को सोशल मीडिया चलाने का ढंग नहीं है, समाज का ज्ञान नहीं है तो, सिर्फ पढ़ो लिखने की क्या जरूरत है।