Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
31 May 2023 · 1 min read

#सुरनदी_को_त्याग_पोखर_में_नहाने_जा_रहे_हैं……!!

#सुरनदी_को_त्याग_पोखर_में_नहाने_जा_रहे_हैं……!!
_______________________________________________
रीति की अर्थी सजाकर, सभ्यता से हो विलग हम,
सद्य कर अभिदान पावक में जलाने जा रहे हैं।।

पूर्वजों से आज तक भी
जो मिली थीं थातियाँ वो,
मान कर सब रूढ़िवादी
पग वहाँ से मोड़ आये।
मोहिनी बदरंग है पर
नग्नता ही भा रही है,
बंध उस परिवेश पश्चिम से
अभी हम जोड़ आये।
आधुनिक विकसित बनेंगे
तज पुरातन भद्रता को,
सोच अपना भाग्य देखो, हम जगाने जा रहे हैं।

रीति की अर्थी सजाकर, सभ्यता से हो विलग हम,
सद्य कर अभिदान पावक में जलाने जा रहे हैं।।

आधुनिकता कह रही है
बंधनों में क्या मिलेगा,
त्याग दे हर एक बंधन
और तू स्वाधीन हो जा।
तज सकल परिधान देशी
नग्न हो प्राधीन हो जा।
व्यक्त कर उन्मुक्तता को
और तू रंगीन हो जा,
दिव्यता जो नव्यतम में
है नहीं प्राचीनतम में।
सोच को मुखरित किया निज को मिलाने जा रहे हैं।

रीति की अर्थी सजाकर, सभ्यता से हो विलग हम,
सद्य कर अभिदान पावक में जलाने जा रहे हैं।।

त्याग दी पुरखों कि संचित
संस्कारिक सब धरोहर,
देखकर सम्भ्रांतता पाश्चात्य
की मन हील गया है।
किन्तु अन्तर्मन हमारा
नित्य ही संवाद करता,
और हमसे प्रश्न एकल
क्या सभी कुछ मिल गया है?
सद्य उभरे प्रश्न का उत्तर
नहीं कुछ पास है पर,
सुरनदी को त्याग पोखर में नहाने जा रहे हैं।

रीति की अर्थी सजाकर, सभ्यता से हो विलग हम,
सद्य कर अभिदान पावक में जलाने जा रहे हैं।।

✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’

Language: Hindi
Tag: गीत
86 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from संजीव शुक्ल 'सचिन'
View all
You may also like:
वो आए और देखकर मुस्कुराने लगे
वो आए और देखकर मुस्कुराने लगे
Surinder blackpen
3375⚘ *पूर्णिका* ⚘
3375⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
सभी फैसले अपने नहीं होते,
सभी फैसले अपने नहीं होते,
शेखर सिंह
14- वसुधैव कुटुम्ब की, गरिमा बढाइये
14- वसुधैव कुटुम्ब की, गरिमा बढाइये
Ajay Kumar Vimal
"समय के साथ"
Dr. Kishan tandon kranti
बेटी
बेटी
Dr Archana Gupta
टूटे बहुत है हम
टूटे बहुत है हम
The_dk_poetry
लगाव
लगाव
Rajni kapoor
“ दुमका संस्मरण ” ( विजली ) (1958)
“ दुमका संस्मरण ” ( विजली ) (1958)
DrLakshman Jha Parimal
आधुनिक युग में हम सभी जानते हैं।
आधुनिक युग में हम सभी जानते हैं।
Neeraj Agarwal
कौन कहता है वो ठुकरा के गया
कौन कहता है वो ठुकरा के गया
Manoj Mahato
चांद सितारे टांके हमने देश की तस्वीर में।
चांद सितारे टांके हमने देश की तस्वीर में।
सत्य कुमार प्रेमी
धुएं से धुआं हुई हैं अब जिंदगी
धुएं से धुआं हुई हैं अब जिंदगी
Ram Krishan Rastogi
शांति के लिए अगर अन्तिम विकल्प झुकना
शांति के लिए अगर अन्तिम विकल्प झुकना
Paras Nath Jha
*वक्त की दहलीज*
*वक्त की दहलीज*
Harminder Kaur
फिर  किसे  के  हिज्र  में खुदकुशी कर ले ।
फिर किसे के हिज्र में खुदकुशी कर ले ।
himanshu mittra
वज़ूद
वज़ूद
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
बच्चे
बच्चे
Dr. Pradeep Kumar Sharma
उसकी मोहब्बत का नशा भी कमाल का था.......
उसकी मोहब्बत का नशा भी कमाल का था.......
Ashish shukla
Jo kbhi mere aashko me dard bankar
Jo kbhi mere aashko me dard bankar
Sakshi Tripathi
अफवाह एक ऐसा धुआं है को बिना किसी आग के उठता है।
अफवाह एक ऐसा धुआं है को बिना किसी आग के उठता है।
Rj Anand Prajapati
एक आज़ाद परिंदा
एक आज़ाद परिंदा
Shekhar Chandra Mitra
नींद
नींद
Kanchan Khanna
तारों जैसी आँखें ,
तारों जैसी आँखें ,
SURYA PRAKASH SHARMA
सुखों से दूर ही रहते, दुखों के मीत हैं आँसू।
सुखों से दूर ही रहते, दुखों के मीत हैं आँसू।
डॉ.सीमा अग्रवाल
मातु काल रात्रि
मातु काल रात्रि
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
कमाई / MUSAFIR BAITHA
कमाई / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
*न्याय-व्यवस्था : आठ दोहे*
*न्याय-व्यवस्था : आठ दोहे*
Ravi Prakash
क्षितिज
क्षितिज
Dhriti Mishra
संज्ञा
संज्ञा
पंकज कुमार कर्ण
Loading...