सुरत और सिरत
अपने को चिता पर जलते देख
एक इंसान ने पुछा जिन्दगी से
ऐ जिन्दगी तुमने हमें मुर्ख क्यो बनाया
जिसको जलना था एक दिन
उसको सजाने मै ताउम्र क्यो लगवाया
और आज मुझे ज्ञान दे रहे हो
सिरत रहता तो नही जलता
ताउम्र लोग तुम्हें याद रखते
यह बात तुमने हमें पहले
क्यो नही बताया।
जिन्दगी बोली
मैंने तुम्हे बताया था
कई तरह का उदाहरण देकर समझाया था
परन्तु तुम तो सुरत के पीछ मशगूल थे
हरदम सुरत को चमकाने मे लगे रहे
सिरत पर कभी ध्यान ही नही दिया।
याद कर जब कभी तुम ईश्वर के पास भी गए
धन, दौलत,खुबसूरती मांगा
सिरत तुमने कभी नही मांगा।
जबकि यह धन दौलत खुबसूरती
यह सब धरती का मायाजाल है
एक सिरत ही है जो तुम्हारा
असली माल है
ईश्वर के घर सिरत लेकर जाना होता है
माटी का यह मूरत लेकर नही।
~अनामिका