सुमेरु छन्द
सुमेरु छन्द पर मेरा प्रयास
सुमेरु छन्द
1222 122, 2 122
हमें परदेश में घर, याद आता।
नही भोजन हमे है, आज भाता।
लगे भोजन मुझे माँ, का निराला।
सदा हाँथों खिलाया, है निवाला।
तुम्हारा प्यार पाने, को तरसते।
सदा अब अश्रु आंखों, से बरसते।
नही मन आज लगता, है हमारा।
दुखी है लाल माँ अब, ये तुम्हारा।
पड़ा मजबूरियों में, आज मैया।
नही दौलत हमारे, पास मैया।
कठिन जीवन बिताता, मैं यहाँ हूँ।
निभाता फर्ज बेटे, का सदा हूँ।
सताती याद माँ जब, भी तुम्हारी।
लिखूं मैं छन्द की फिर, पंक्ति प्यारी।
रहे आशीष माँ हम, पर तुम्हारा।
बनूँ मैं पुत्र तेरा, प्राण प्यारा।
अभिनव मिश्र ‘अदम्य’