सुमन
***********सुमन (दोहा)***********
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बाग में है सुमन खिले, रहते महक बिखेर।
भिन्न भिन्न खुश्बू मिले, संध्या और सवेर।।
रंग बिरंगे फूल हैं, उपवन का श्रृंगार।
देख कर सदा मन खिले,कुदरत का उपहार।।
पुष्पों से उद्यान भरे, छायी बहुत बहार।
डाली डाली खिल उठी,सजे हैं सभी द्वार।।
मन मोहक सा हो उठा, ताक फूल की बेल।
कली कली खिल सी गई , रंग बिरंगा खेल।।
मनसीरत मोहित हुआ , फूलों का दरबार।
बुझा उर भी जाग उठा , रंगत अपरंपार।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)