सुबह …
ओस घूँघट पट किये
सुरमई सुबह होठ सिये
कोई भेद न खुल जाये
मिलन की निशानियों का
कंपकंपाती-ठिठुरती-सी
अलसाई-लजाई नव वधू-सी
चल रही होले – होले
दिनकर नव दूल्हे-से
जाग रहे मन्द-मन्द
मुस्कान से नेत्र न खोले
संसार को जगाने-चलाने
जागना होगा नित्य ही
नये कर्त्तव्य हेतु
भागना होगा नित्य ही …
★★★★
डॉ. अनिता जैन “विपुला”