सुबह
सूर्य की पहली किरण और फैलता धूंधला मटियाला-सा रेत!नदी का गंधला बहता शीतल नीर और नीचे की उतरती सीढ़ियों में भीगते पांव जिनके भीगते ही सारे रोये मानो रोमांचित हो गये हो।मुस्कुराती महकती हवा में टहलते खिले हुए चेहरे चुप रहकर भी बहुत कुछ कह जाते हैं कभी फैलती आंखों से तो कभी खिले होठों से!
मनोज शर्मा