*सुबह हुई तो गए काम पर, जब लौटे तो रात थी (गीत)*
सुबह हुई तो गए काम पर, जब लौटे तो रात थी (गीत)
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सुबह हुई तो गए काम पर, जब लौटे तो रात थी
1)
उगता सूरज सदा ट्रेन या, बस में जाते देखा
आपमधाप हड़बड़ी मानो, अपनी जीवन-रेखा
दो पैसे तो मिले हमें पर, हमने खाई मात थी
2)
छोटे-छोटे सुख प्रतिदिन के, रहे निरंतर खोते
दिखते फ्लैटों में तो हॅंसते, भीतर से पर रोते
दो एसी के लिए भटकना, रोजाना की बात थी
3)
सौ सालों तक यों तो हमने, सॉंसें अपनी ढोईं
एक दिवस भी नहीं चैन से, ऑंखें निशि-भर सोईं
मुर्दा एक मशीन-सरीखी, अपनी बस औकात थी
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451