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9 Jul 2018 · 1 min read

सुबह-शाम

सुबह -शाम

कभी-कभी

तुम्हारे चेहरे को

पढ़ लेता हूं

भाव भंगिमाओं में

तुमको ढ़ूढ़ने का

प्रयास कर लेता हूं

और अन्ततः

मैं खुद के अन्दर ही

तुमको ढ़ूढ़ लेता हूं

और तुम्हारे अस्तित्व को

हर तरफ हर जगह

हर कृति आकृति में

देख लेता हूं

तुम्हारी आवाज़

सुबह-सुबह तो

पेड़ों पर चहचहाती

चिड़ियों में सुन लेता हूं

तुम्हारे होठों की मुस्कान

तरह-तरह के खिले हुए

फूलों में देख लेता हूं

आंखों की गहराइयों को

दूर तक फैली हुई

झीलों में झांक लेता हूं

हृदय की ऊंचाइयां को

आसमानों को छूकर

मैं माप लेता हूं

तुम्हारी चेहरे की चमक

चांद तारों के अन्दर

आंक लेता हूं

और तुम्हारे प्रति

प्रफुल्लित हर्षित

आकर्षित हो लेता हूं

तुमसे मिलने के लिए

मन ही मन

बेताब हो लेता हूं

सुबह-शाम

कभी-कभी

तुम्हारे चेहरे को

मैं पढ़ लेता हूं

***

रामचन्द्र दीक्षित ‘अशोक’

Language: Hindi
542 Views
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