सुबह की किरणों ने, क्षितिज़ को रौशन किया कुछ ऐसे, मद्धम होती साँसों पर, संजीवनी का असर हुआ हो जैसे।
चलने लगे हैं, वो कदम मेरे साथ कुछ ऐसे,
की लहरों का अस्तित्व जुड़ा हो, सागर के नाम से जैसे।
अँधेरे की इनायतें हुईं हैं, किस्मत की लक़ीरों पर ऐसे,
की टूटते तारे ने मन्नतें पूरी की हों, बिना कुछ मांगे जैसे।
आँखों में बसे आंसुओं ने, घर छोड़ा कुछ ऐसे,
की बसा कर चले गए हों, आँखों में नये ख़्वाबों को जैसे।
बातें होती हैं, बेमकसद सी, बेबाक सी ऐसे,
की मुस्कुराना सीखा दिया हो, मुझे भी अब खुद के जैसे।
सुबह की किरणों ने, क्षितिज़ को रौशन किया कुछ ऐसे,
मद्धम होती साँसों पर, संजीवनी का असर हुआ हो जैसे।
दरवाज़े खुलने लगे हैं अब, बिना दस्तक दिए कुछ ऐसे,
की ज़वाब मिलने लगे हों, सवालों के बिना कुछ पूछे जैसे।
पहचानने लगीं हैं, रूठी गलियां फिर से हमें ऐसे,
गुमनामी में गुम रहकर भी, बन गया हो नाम हमारा जैसे।
छंटने लगे हैं आसमान से, बादल दर्द के कुछ ऐसे,
की कृष्णा ने सुदर्शन छोड़, बजायी हो बंसी मधुबन में जैसे।