*सुप्रभात*
#मुक्तक-
■ सहर का पैग़ाम
[प्रणय प्रभात]
ज़ीस्त के जिस्म पे रिदा रखना।
रूह के जिस्म पे क़बा रखना।।
अब भी इंसान की निशानी है,
अपनी मासूमियत बचा रखना।।
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#शब्दार्थ-
सहर-सुबह, पैग़ाम-सन्देश, ज़ीस्त-जीवन, रिदा-चादर, रूह-आत्मा, क़बा-कपड़ा।