सुन ले मां- बेटी की पुकार
लोगों की मानसिकता जो वहशियाना और राक्षसी रुप लेती जा रही है, तो गर्भ के अंदर बैठी हुई कन्याओं की रुह बाहरी माहौल को देखते हुए अपनी माताओं से भयभीत होकर क्या फरियाद कर रहीं होंगी बस यही महसूस किया और लिख दिया—–सुन ले मां- बेटी की पुकार
चाहे मार ही दे मां, भीतर मुझको
बाहर दिखे है बेहद, खतरा मुझको
तू तो दया की मूर्त है न,
रौंद दे अंश मेरे, तू दफना दे मुझको
बाहर न आने देना मुझको, बाहर न आने देना मुझको
तेरे देश में बचपन को मेरे,
अचानक ही ये अंधियारें घेरे
घर में ही कब डस जाएंगे,
अगल-बगल में ये सांप जो फेरे
तेरी देह में जो सुकून है, वो कहां मिलेगा बाहर मुझको
बाहर न आने देना मुझको
चढ़े जवानी तो राह और कठिन है,
पग-पग पर बेहिस लोग बिछे हैं
घूरे ऐसे खा जाएगें, कपड़ों समेत चबा जाएगें,
मुझ पर अन्याय कर जाएगें
खुदा के कहर से भी बच जाएगें,
मुझ जिंदा को मुर्दा कर जाएगें
तेरे खून में जो आराम है, कहां मिलेगा बाहर मुझको
बाहर न आने देना मुझको—–
रब ने भी क्या संसार बनाया,
लड़की को इतना लाचार बनाया
शिक्षा, ममत्व से शानदार बनाया,
समाज को पुरुष तरफदार बनाया
मां तेरी सांसों में ही मेरी सांस है
तेरे आगोश में ही मुझे विश्राम है न लाना तुम बाहर मुझको
तड़पा देंगे ये सारे मुझको——-
मीनाक्षी भसीन © सर्वाधिकार सुरक्षित