सुन मुसाफिर…, तु क्यू उदास बैठा है ।
सुन मुसाफिर…, तु क्यू उदास बैठा है ।
क्यू सुनता है औरो की बातें ?
कभी खुद की भी तो सुन।
मिलेंगे हजारों तुझें , राहों से यू ही भटकाने वाले
पर तु सुनना खुद की ही ।
कोई नहीं मिलेगा तुझे यहाँ, मंजिल तक पहुँचाने वाला!
सफर तेरा है , मंजिल तेरी है, तो
इसे तय भी तुझे अकेले ही करना है।
चल उठ….
यू न उदास हो
के अभी तो तुझे पुरा सफर तय करना है।
सोच जरा,तेरी सफलता की कहानी ,
जब तु खुद सुनेगा ,ओरो की जुबानी
क्यू उदास होता है,
अभी तो दो कदम ही चलें है तूने
ओर थक कर यू बैठ गया है तु ।
चल उठ…
थोड़ा और चल, और चलता रह तब तक, ..
जब तक की मंजिल ना मिल जाए
और सफ़लता हाथ ना लग जाए।।