सुन कान्हा
क्यों तेरे शरणों मे कान्हा,
सभी झुकाते अपना मस्तक,
ऐसी भी क्या खूबियां हैं तुम में,
जो तुम को सब रिझाते है,
हम तो तेरे वंशज हैं कान्हा ,
फिर भी तुम आते क्यों नहीं,
भरी सभा मे जब पंचाली ने,
पुकारा था मोहन, द्वारकाधीश मुरारी
बचाया था द्रुपद कुमारी को तुमनें,
फिर इन कन्या को बचाते क्यों नहीं,
देखो, सुनो इस धरा कि विपदा को,
फिर अपनी अर्धांगिनी को बचाते क्यों नहीं,
शुद्ध किया था जमुना को तुमनें,
दूर भेज कालिया को,
फिर गंगा ,को बचाते क्यों नहीं,
प्रदुषण कि कालिया से,
कान्हा ,तुम सुनते क्यों नहीं हमारी बात,
देखो भारत तड़प रही,
अब तो आ जाओ सुन के पुकार