सुन्दरता और आईना
वह रूपगर्विता थी। उसे अपनी सुन्दरता पर बहुत गर्व था। उनका सारा मापदण्ड जिस्मानी सुन्दरता पर ही आधारित हो गया था। वह न केवल दिन में वरन् रात में भी कई बार आईने के सम्मुख उपस्थित होकर अपना सौन्दर्य निहार लेती थी। उनकी इस आदत से आईना भी परेशान हो चुका था।
विवश होकर एक दिन आईना बोल पड़ा कि इतना घमण्ड ठीक नहीं। मैं तो सिर्फ बाह्य आवरण ही दिखलाता हूँ। यही मेरी सीमा है।
आईना ने आगे कहा कि अरी ओ लड़की, तुम अपने हृदय में घमण्ड के स्थान पर विनम्रता, संस्कार, त्याग, समरसता जैसे गुण भरना सीखो। यही असली सुन्दरता है।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हरफनमौला साहित्य लेखक
टैलेंट आइकॉन 2022-23