सुनो शाहनवाज !!
हो तुम आदत से मजबूर ,
छेड़ते हो सदा कश्मीर का राग ।
तुम पर भरोसा क्या करें ,
तुम पर लगे दहशत गर्दी के दाग।
चर्चाएं और मुलाकातें बहुत कर लीं,
दिखाए हर बार झूठी दोस्ती के सब्ज बाग ।
एक मन तुम्हारा समझोता चाहता,
और एक मन करता दगाबाजी ।
सामने तो मीठी मीठी बातें करते ,
और पीठ पीछे करते आतंकवादियों की घुसपेठी ।
तुम हो ऐसे पागल और सनकी,
कोई बात तुम्हारी कश्मीर के बिना शुरू नहीं होती।
तुम क्यों यह सच्चाई स्वीकार नही करते ,
की कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है ।
तुम्हें यह संस्कार किसी ने नहीं सिखाए,
की कभी किसी पराई चीज पर नजर नहीं गढ़ाते।
पराई नार,पराया धन और पराई जमीन ,
इस पर बुरी नजर डालना पाप है ।
मगर फिर भी करते हो तुम पाप ,
कहने को नाम तुम्हारा” पाक ” है ।
तुम तो हो सकल विश्व में हो ,
इंसानियत के नाम पर बदनुमा दाग ।