सुनो राम अनुज
सुनो राम अनुज ,
अब मत खींचो लक्ष्मण रेखा,
मेरे चारों ओर,
सीता भी नहीं रह पायीं,
सुरक्षित इस रेखा से,
मैं कैसे रह पाऊंगी,
मत बांधो मेरे पैर,
जंजीर बना इस रेखा से,
मेरी सुरक्षा की चिंता में,
मुझे ही मत कैद करो,
कठोर सींखचों में,
बढ़ने दो मुझे चलने दो,
मत करो सीमित,
मेरे सपनों को,
किसी रावण के डर से,
यदि देखना ही है सुरक्षित मुझे,
तो खींचो एक लक्ष्मण रेखा,
अपने अन्तस् में,
उस दशानन के लिए,
जो पनप रहा है,
किसी और जानकी के लिए।
…..००……