सुनो पुलिस जी
सुनो पुलिस जी रिश्वत खाना
छोड़ भी दो सरकार।
वरना पछताओगे रिश्वत खाने के बाद।
जनता बेचारी पर करते मनमानी
और नेताओं का भरते तुम पानी
पैसा तो खाते हो गरीब समाज का
और काम करते हो गुंडे बदमाश का
सुधर भी जाओ तुम वरना रहोगे
धोबी का कुत्ता घर का ना घाट का
हर कोई आप में ना रिश्वत खाता
अपने कर्तव्य पर जान लुटाता
और खाकी वर्दी का मान बढ़ाता
प्रेम से उनकी पूजा हम करते हैं
उनके सम्मान में भी कवि गीत गाता।
– विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’