सुनो नारियो
सुनों नारियों तुम्हें स्वयं ही, निज रक्षा करनी होगी।
सदा लड़ाई अपने हित की, स्वयं तुम्हें लड़नी होगी॥
तुम्हें सीखना होगा लड़ना, दुष्ट और हैवानों से।
दुर्गा काली चंडी बनकर, लड़ो दैत्य शैतानों से।
लक्ष्मीबाई बनकर नारी, तुम अपनी हुंकार भरो।
अस्त्र शस्त्र से सज्जित होकर, दुष्टों का संहार करो॥
सिंह सवारी करके देवी, कमर तुम्हें कसनी होगी।
सदा लड़ाई अपने हित की, स्वयं तुम्हें लड़नी होगी॥
शास्त्र संग शस्त्रों की शिक्षा, फिर तुमको लेना होगा।
दिशाहीन असुरों को फिर से, दंड स्वयं देना होगा।
मतभूलो तुम ही जननी हो, तुम ही जीवन दाता हो।
दुष्ट कपूतों को बतलादो, तुम ही काली माता हो॥
आँखों में भरकर अंगारे, बात तुम्हें कहनी होगी।
सदा लड़ाई अपने हित की, स्वयं तुम्हें लड़नी होगी॥
अपने ऊपर से अबला का, नोच मुखौटा फेंको तुम।
सबला बनकर हे रणचंडी, चक्रव्यूह को भेदो तुम।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, मुक्त निशाचर घूम रहे।
अपराधी के अपराधों को, तुमने अब तक बहुत सहे।
बैठ दानवों की छाती पर, मूँग तुम्हें दलनी होगी।
सदा लड़ाई अपने हित की, स्वयं तुम्हें लड़नी होगी॥
सभ्य समाजी ठेकेदारों, एक बात स्वीकार करो।
शस्त्रों की शिक्षा बेटी को, बेटों में संस्कार भरो।
पहले गुरु तो मातपिता हैं, करनी होगी इन्हें पहल।
अगर नहीं जागे हम सब तो, पीना होगा नित्य गरल॥
हे माताओं मजबूती से, नींव तुम्हें भरनी होगी।
सदा लड़ाई अपने हित की, स्वयं तुम्हें लङनी होगी