सुना है फिर से मोहब्बत कर रहा है वो,
सुना है फिर से मोहब्बत कर रहा है वो,
न जाने किससे वफ़ा कर रहा है वो।
किस मिट्टी का बना है ये हमें भी पता नहीं,
कांटों भरा दामन लेकर फूल बन रहा है वो।
उनकी सोच का पैमाना काश! कुछ हमें भी पता चलता,
समझते हम भी थोड़ा की कैसा जाल बुन रहा है वो।
जिधर देखो उधर ही झूठ की बेजोड़ आजमाइश है,
लगता है इसी दौर का ही मुसाफिर बन रहा है वो।