सुनने में सच ही लगता है
लोग कहते हैं …वक़्त नहीं मिलता ,
सुनने में सच ही लगता है
क्योंकि हम भी तो उन्ही में से हैं
जो कहते हैं की वक़्त नहीं मिलता
लेकिन क्या सच में सच यही है ?
वक़्त मिले तो चलो सब अपने अपने
फ़ोन की कॉल लॉग को देखते हैं ,
देखा ? कुछ मिला ?
मिला न ? ये दो – दो ये तीन तीन घंटे किस्से बात करने का वक़्त रहता है ?
आखिर ये वक़्त न मिलने का बहाना हम बनाते किससे हैं ?
खुद को ही देते हैं कोई छलावा
या उन बूढ़े हो गए माँ पिता को देते हैं ?
या के उनको जो हमसे मिलने या बात करने की बाट जोहते हैं ,
आख़िर ये वक़्त क्यों नहीं मिलता ?
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’