सुधियों के शूल
मदमाते मौसम में सुधियों के शूल
तन रूपी तरुवर की हिल जाती मूल
पायल के बजते ही पीड़ा का ताप
बढ़ता, तब क्या कोई पाता है माप
पलकों की टहनी पर आंसू के फूल
तन रूपी तरुवर की हिल जाती मूल
मिट्टी की हॅंड़िया में दिल को कर कैद
जिस्म की जुन्हाई में घुमा रहे बैद
चमड़ी के चक्कर में पथ जाते भूल
तन रूपी तरुवर की हिल जाती मूल
हसरत के धागे पर बीते दिन – रैन
पुनः पुनः प्रीति करे पाहुन बेचैन
पायल प्रभाती को देती नहीं तूल
तन रूपी तरुवर की हिल जाती मूल
कायनात कुदरत की बरसाती नेह
धरती पर धीरे से धर देती देह
सपने को मिल जाता है कोई कूल
तन रूपी तरुवर की हिल जाती मूल
महेश चन्द्र त्रिपाठी