सुधर जाओ
तूने ऐसा किया तूने वैसा किया तो नहीं किया तूने वह किया,
क्यों आपस में ही हूं लड़ रहे दुनिया वालों ।
एक ही जन्म मिला है जीवन सुधारने को क्यों अपना जीवन बिगाड़ रहे हो दुनिया वालों।
समझना है समझ जाओ,
ना कोई कहेगा सुधरने को,
ना कोई आएगा संभालने को।
रह रहे हैं सब एक ही छत की आस एक ही आसमान की छत के नीचे,
फिर भी लड़ मर रहे हैं धर्म जात के पीछे।
यहां जी रहा है हर कोई अपने, लिए निस्वार्थ मां-बाप है जीते हैं जो बच्चों के लिए।
✍️वंदना ठाकुर ✍️